विमानारोहण
थोड़ी देर में आकाश घोर गर्जन से गूँज उठा, और वहाँ होने वाले जय जय शब्द से, मूर्छित लोग अकस्मात् जाग उठे,वे आश्चर्य से चरों और देखने लगे,सभा मंडप ज्यों का त्यों उसमे नाम की भी अग्नि नहीं थी सोचने लगे यह गुरुदेव की लीला थी "अब क्या होत , जब चिड़िया चुग गयी खेत"
ऐसा सोचकर अपने को कोस रहे थे इतने में उन्हें आकाश में एक परम शोभायमान विमान दिखाई दिया उसमे सुन्दर शंख ध्वनि हो रही थी यह देखते ही बहुत से लोग जिन्हें सत्संग का चस्का लगा था उठे :-"अरे अरे वाह वाह !यह तो उस अग्नि के पार दिखने वाला विमान है तेजस्वी कान्ति वाले पुण्यात्मा भी दिखाई देते हैं वे तो हमारे साथ के लोग हैं उन्हें लेकर बटुक जी महाराज विमान में चढ़ रहे हैं। आह !उन्हें कितना आनंद होता होगा। यह सब उस अद्भुत बटुक बालक की ही लीला है वास्तव में वह सबका गुरु ईश्वर तुल्य है अभाग्य के कारण ही हमें उसके वचनों पर विश्वास नहीं हुआ पर अब क्या उपाय ! पानी बह जाने पर सोचना किस काम का, धिक्कार है धिक्कार ! श्रद्धा रूप अमृत तत्व से हीन हमको धिक्कार है। इस तरह भारी पश्चाताप सहित जीव संताप करते थे।
विमान चालक ने कहा," हे जिज्ञासु ! तू स्थिर मन करके मुझसे सुन :-हे मायिक जीव यह असार संसार और उसका व्यवहार अंत में झूठा है उससे प्रीति को हटाकर सत्य बस्तु पर लगानी चाहिए,संसार की नयी-नयी पैदा होने वाली इच्छाओं का त्याग करना चाहिए इच्छा दूर हुई मोह मिटा कि , विषय दूर हो जाते हैं सत्संग श्रवण करना ही इष्ट है श्रवण करते करते माया से लिपटे हुए जीव के अनेक तीक्ष्ण पाप समूल नष्ट होंगे और ह्रदय निर्मल होने से उसमे अच्युतपुर वासी अच्युत परमात्मा की प्रेम भक्ति का प्रकाश होगा और वह जीव उस विमान में वैठने का अधिकारी बन,अच्युतपुर में प्रवेश कर सकेगा।
ऐसे विचित्र दिव्य विमान में वैठकर, गुरु वामदेव की कृपा से सनाथ हुए वे सब पवित्र जीव आकाशमार्ग को चले ,मार्ग में जो जो आनंददायक और विचित्र दृश्य दिखाई देते थे उन्हें देख हर्षित हो सब विमान बासी बारम्बार "जय जय गुरुदेव !जय जय गुरुदेव !"की मंगल ध्वनि करते थे विमान में वैठे हुए भक्तों को नित्य नए नए ज्ञान कराए जाते थे सब विमान बासी ऐसी स्तिथि में थे मानो वे मुक्तावस्था को प्राप्त हो गए हैं ऐसे आनंद सुख का अनुभव कराते हुए यह विमान एक अत्यंत विचित्र और विस्तीर्ण नगर में आकर अंतरिक्ष में स्थिर हुआ।
शरणागत
नीलम सक्सेना
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