Thursday, 9 March 2017

अहं ब्रह्मास्मि

                                          अहं ब्रह्मास्मि 

                     "जो बात करोड़ों ग्रंथों से कही गयी वह बात मैं आधे श्लोक से कहता हूँ। 
                           कि ब्रह्म सत्य है, जगत मिथ्या है और जीव केवल ब्रह्म ही है।।"

राजा बरेप्सु ने कहा,"हे गुरुदेव!राजा छादित बुद्धि को तत्वमसि के पद का ज्ञान होने पर वह इस संसार से किस तरह तर गया, वह मुझे बताओ,क्योकि इसे जानने की मेरी उत्कट अभिलाषा है"
                        बटुक जी बोले," वह राजा परमानन्द में  बिलकुल लीन हो गया,महात्मा ने राजा के सर पर हाथ रखकर पूछा:-'राजन! को भगवान् ? को भगवान् ? तब राजा ने आँख खोलकर अत्यंत हर्ष पूर्ण इतना ही बोला,"भगवन! देह भाव से आपका दास हूँ, जीव भाव से आपका अंश हूँ और आत्म भाव से जो तुम हो वही मैं हूँ, ऐसी मेरी गति है, अहम् ब्रह्मास्मि ! मैं ब्रह्म हूँ यह सत्य है,आत्मारूप यह सर्व ब्रह्म है।"ऐसे आनंद में उसके रोएं खड़े हो गए शरीर से उसके पसीना निकलने लगा,उन्मत हो नाचने लगा। योगिराज ने उसे हृदय से लिया औरअनेक आशीर्वाद दिए और राजा से पूछा कि राजा अब तेरी शंका दूर हुई ?राजा बोला,"हाँ गुरुदेव ,मैंने प्रत्यक्ष अनुभव किया कि उस परमात्मा का अंश होने से मैं परमात्मा स्वरुप हूँ ,आपकी कृपा से अब बिल्कुल निःशक हो गया हूँ,परमात्मा परम सुखानंदमय है, वह परम ज्ञानमय है, अपने तेज से हृदय को प्रकाशित करके अज्ञान से मुक्त करता है,इसलिए परम गुरुरूप है,गुरूजी महाराज अब मैंने आपके उपेदश का भावार्थ समझा,परमशान्ति -सदाकाल का अविनाशी सुख भी मैं स्वयं हूँ ,परमात्मा सबका मूल है ,वही सबमे व्याप्त दीखता है,अहो कृपानाथ !आपकी कृपा से अब मैं धन्य हूँ ! धन्य हूँ ! धन्य हूँ !  मैं सदा के लिए आपकी शरण में हूँ।"
                      इतना कहकर छादितबुद्धि उन योगीराज के पैरों में गिर पड़ा, तब महात्मा ने बड़े प्रेम से उठाकर अपने हृदय से लगाया और कहा," हे वत्स! हे पुण्यवंत! अब तू सब तरह से इस असार संसार से मुक्त हो गया है , अब तू नगर में जा और धर्म सहित प्रजा का पालन कर तथा इस परम साध्वी पतिवृता(अपनी रानी) का मनोरथ पूर्ण कर,उससे अपने समान परमश्रेष्ठ पुत्र उत्पन्न कर।"
                      यह सुन राजा बोले,"हे कृपानाथ! मैं आपकी कृपा से बंधन मुक्त हुआ हूँ,अब फिर इस मिथ्या प्रपंच और ऐसे दुखमय भवपाश में  क्यों पडूँ ?अब किसकी स्त्री  और किसकी संतान,किसका देश और किसका राज्य ? बस अब तो क्षमा करो अब तो "शिवोSहम ! शिवोSहम !"
                      यह सुन गुरुदेव बोले," हे छादितबुद्धि! जो मनुष्य संसार में रहकर भी उस पर प्रीती रखे बिना सब काम अच्छी तरह से करता है ब्रह्म-आत्मा को सब में एक समान ओत-प्रेत देखता है वही सच्चा स्थित प्रज्ञ  है तेरे जैसे को दुःख क्या,भवपाश कैसा और बंधन किसका है, सब ब्रह्मरूप समझकर नीति से किये हुए राजयादिक,स्त्री संगादिक और सन्तानोत्पादनादि कार्य भी अंत में लेश मात्र दुःखप्रद न होकर सिर्फ ब्रह्मरूप फलवाले सुखमय होते हैं हे राजन !इसमें तुझे तो आश्चर्य लगने लायक कुछ भी नहीं है परब्रह्म के स्वरुप से माया के आश्रय द्धारा जो यह परब्रह्म रूप सृष्टि उत्पन्न हुई उसका सब व्यव्हार ब्रह्मरूप समझकर ही  प्रत्येक मनुष्य को आज्ञा है इसलिए हे राजन! तू भी मेरी आज्ञा मानकर ,जलकमल न्याय की तरह अलिप्त रह,ब्रह्मरूप राज्य का,ब्रह्मरूप धर्म से पालन कर ,राज्यर्शीपद के पद के योग्य हो,तेरा कल्याण हो और कल्याणरूप तेरी यह ब्रह्मनिष्ठ सदा अचल रहे।" गुरुदेव के ऐसे उत्तम वचन सुन राजा उनके पैरों में पड़ा पत्नी सहित अपने नगर को चला, गुरुदेव के प्रति पूर्ण भक्ति रख उनके आज्ञानुसार ब्रह्मरूप से राजा चलकर ,देहावसान (देहांत)के बाद परम तत्त्वको प्राप्त हुआ।

                                                                                       
                                                                                                             शरणागत 
                                                                                                         नीलम सक्सेना 

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