Thursday, 23 March 2017

जगतनगर

                                        -:जगतनगर:-

विमान के स्थिर होते ही बटुक  महाराज जी सब पवित्र जीवों को संबोधन कर बोले :-"अब तुम सब तैयार हो जाओ ,चित्तवृत्ति स्थिर करो यहाँ क्या क्या अद्भुत चमत्कार दिखाई देता है इस पर पूर्ण ध्यान दो ,इसके रहस्य का विचार करो ,यहीं से परम दुर्लभ अच्युत मार्ग आरम्भ होता है ,यह देखो हम सब कहाँ आये हैं ? यह सुनकर राजा बरेप्सु तुरंत खड़े होकर जमीन की और देख आनंद और आश्चर्य सहित बोले :-"अहो! गुरुदेव! यह तो कोई बहुत बड़ा विलक्षण नगर दिखाई देता है, अहा !कृपानाथ , हम इस नगर से इतने ऊँचे अंतरिक्ष में हैं तो भी आपके अनुग्रह से ,हमें इस देह के साथ जो दिव्यदृष्टि प्राप्त हुई है उससे हम दूर दूर तक देख सकते हैं। प्राचीन काल में मार्कण्डेय ऋषि को श्री बाल मुकुंद भगवान् के पेट में दिखी हुई विराट  माया के समान यह अदभुत नगर कैसा होगा ?
                        वामदेव जी ने कहा :-" राजा ,वास्तव में भगवान की विराट माया के समान यह अति विस्तृत नगर,विचित्रता,अनोखापन और चमत्कारों से भरा है इसको महात्मा पुरुष 'जगतनगर' पुकारते हैं इसमें सब वस्तुएं हैं , सब जाती के प्राणी हैं, सब विधाओं के भण्डार  हैं  ,सब तरह की भूमि है, सब समय काल व्यबस्था है और सब रस है .सारे जगत के भीतर के समस्त दृश्यादृश्य  पदार्थ ,चित्रपट में चित्रित महान चित्र की तरह इसके भीतर पूर्ण रूप से व्याप्त है इसलिए ही इसका नाम जगतनगर  पड़ा है सारे संसार में जो कुछ है वह सब इस  नगर में हैपरब्रह्म की समग्र अद्भुत लीला जो जगद्रूप  प्कट हुई है यह वही है तुम सब लोग यहाँ सुख से ईश्वर की अनेक लीलाओं के चमत्कार  को स्थिर चित्त से देखो। "  


                                                                                                       शरणागत 
                                                                                                    नीलम सक्सेना 

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