Friday, 3 February 2017

संसार खेती के समान है

संसार खेती के समान है 

राजा बोला महाराज उष्ण काल के असह्य ताप से तप्त हुई पृथ्वी को वर्षा होते ही कृषक अच्छी तरह जोतकर नरम करता है और फिर उसमे अपनी इच्छा अनुसार अन्न बोया हुआ बीज अंकुर रूप से उग निकलता है और धीरे -धीरे बढ़ता है कोई बीज निरर्थक भी जाता है धीरे धीरे अंकुर अपना रूप क्रम से बदलते -२ बड़े पौधे हो जाते है और पौधे मे फूल आने लगता है। फूल झड़ने पर बीज कोश मे दूध से भरे हुए कण उत्पन्न होते है वह कण पककर सूखने लगते है तभी कृषक उन्हें काट लेता है बस हो गया यह अन्न पैदा करने वाले कृषक का इतिहास है।
इसी तरह यह संसार खेती रूप है उसमे वासना देह रूपी बीज , माता रूप पृथ्वी मे बोया जाता है उसमे प्राणी जन्मरूप से पैदा होता है और स्तनपान , भोजनादि रूप वर्षा से बढ़ता है। उसमे बालक को होने वाले रोग रूप , हल , खुर्पी द्धारा नींदा जाता है। निंदाई के समय बालकरूप अनेक पौधे मर भी जाते है और बचे हुए आगे बढ़कर गृहस्थाश्रम मे पड़ते है , फलते है और पके हुए पेड़ो की कटनी की जाती है वैसे ही ये मनुष्य रूप पौधे भी अवस्थापूर्ण होने पर कटनी का समय आने पर अनेक रोगादिक हँसियो द्धारा कट कर नष्ट हो जाते है। बस हो गया जीवन पूरा फिर नयी खेती उपजती है और नाश होती है यही नित्य का क्रम है ।
इस तरह बारम्बार -----
                                पुनरपि जननम , पुनरपि मरणम । 
                                पुनरपि जननी , जठरे शयनम ॥ 
                                                                                   के अनुसार होता ही रहता है । जीते है और मरते है । कोई अभी तो कोई देर से , परन्तु काल के दाँतो का बलि होगा ही ॥

इस विश्व मे रहने वाला प्राणी उस कृषिकार आनन्दधन परमात्मा से पलता व उत्पन्न होता है और अंत मे आनंदस्वरूप श्री महेश्वर परमात्मा ,परब्रह्म मे लय होता है । तो जिसने उत्पन्न किया ,पाला -पोषा , रक्षा की उसी ने काट लिया उसमे शोक क्यो करना चाहिए? शोक होने का कारण इतना ही है कि बुलबुले के समान इस संसार के सुख का स्वाद प्राणियों की जीभ मे खूब लगा है और इसी से क्षणिक विषय सुख के स्वाद मे आसक्ति होने से सब सुखो का धाम वह इस नाशवान संसार को मान बैठता है और मोहवश शोक की आग मे जलता रहता है ।

                                                                                                                   शरणागत 
                                                                                                                नीलम सक्सेना 















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