संसार चक्की
इसी तरह मोहजित के सारे कुटुंब की योगी द्धारा अत्यंत युक्तिपूर्वक परीक्षा होने पर भी ,उनके अशुभ समाचार या अनेक प्रकार के मोहमय उपदेश से कोई मनुष्य शोकविष्ट या मोहग्रस्त नहीं हुआ। इससे बहुत विस्मित होकर वह सबसे मोहजित की प्रसन्नता बतलाकर योगबल द्धारा क्षण -भर मे वहां से अपने आश्रम मे आ पहुँचे। वहाँ राजकुमार मोहजित उनकी मार्ग प्रतिक्षा करते बैठा था। उनको देखते ही योगिराज एकदम घबराये के समान बोले " अरे राजपुत्र गजब हो गया अरे ! तू तो यहाँ सुख चैन से बैठा है परन्तु तेरा घर तो नष्ट भ्रष्ट हो गया" न जाने क्या ईश्वरी प्रकोप हुआ कि जिससे अचानक महाअग्नि प्रकट हुआ उसमे सारा नगर ,परिवार , प्रजा जलकर भस्म हो गए। अब तू अकेला हो गया तू कुटुम्बहीन हो गया , तेरी सब दिशाएं पलभर मे शून्य हो गई । प्रारब्ध की कैसी गति है इतना कहकर योगी उदास मुँह से खड़े रहे , योगी के मुख से महा खेदकारक समाचार सुनने पर राजपुत्र बड़े ही शांत भाव से बोले।
योगिराज तुम इतने उदास क्यों हो गए हो ? उनका नाश हुआ इसमें क्या नवीनता घटी है जिसके कारण तुम विस्मित और चिंतापुर हो रहे हो आप महात्मा और योगमागविलम्बी होकर भी इस संसार चक्की से अनभिज्ञ हो यही आश्चर्य है । मैं आपसे एक लौकिक वार्ता करता हूँ उस पर विचार कर देखो और फिर खेद करो।
प्राचीन काल मे एक नगर मे कोई महात्मा हरिनाम स्मरण करते हुए निरीह (इच्छारहित) विचरण करता था एक दिन वह घूमते हुए एक मोहल्ले मे जा पहुँचा। वहाँ एक घर से उसको घररर -घररर शब्द सुनाई पड़ा। यह क्या होता है इसे जानने के लिए वह कान लगा कर खड़ा रहा। सुनने पर उसे मालूम हुआ कि एक स्त्री अपने घर मे चक्की पीस रही है। वह गेहूँ पीस रही थी। बार-बार उसमे एक हाथ से गेंहूँ डाल रही थी। यह देखकर वह संत महात्मा एकदम उदास हो गया और जोर से रोने लगा। उसको रोता हुआ देखकर लोगो की भीड़ एकत्र होने लगी । आने जाने वाले लोग विस्मित होकर संत से रोने का कारण पूछने लगे । परंतु वह किसी तरह न चुप होता और न ही उत्तर देता यह देखकर लोगो को और भी आश्चर्य हुआ । लोगों ने उस योगी से पूछा 'की भाई !आपको क्या दुःख है जिससे आप इतना रो रहे हैं लेकिन उसने कोई उत्तर नहीं दिया।
इतने में एक दंडधारी चतुर्थाश्रमी "श्री मन नारायण ,नारायण,नारायण !" ध्वनि करते हुए वहां आ पहुँचे और महात्मा के पास पहुँचकर उनसे रोने का कारण पूछा , दंडी स्वामी को देखते ही महात्मा ने हाथ जोड़कर नमस्कार किया और चुप होकर अपने रोने का कारण बतलाया । वह बोला महाराज यह बाई बहुत देर से गेहूं पीस रही है इसकी संहार कारिणी क्रिया देख मुझे इसके समान उस बड़ी चक्की की महाप्रलयकारिणी क्रिया याद आती है और उसके भीतर दब कर पिस जाने वाले प्राणियों पर अतिशय करुणा और शोक होने से मुझे रुलाई आती है । यह सुनते ही दंडी स्वामी ने उस संत को धन्यबाद देकर हृदय से लगा लिया खड़े हुए लोगों से कहा, कि मैं इन संत महात्मा की बढ़ाई का क्या वर्णन करूं । अहा! इनका हृदय कैसा दयालू है ,इनकी बुद्धि कैसी परोपकारिणी है !अहो !ऐसे महात्मा जगत के कल्याण के लिए ही निरंतर जीवन धारण करते हैं। हम सब पर इतना बड़ा उपकार हुआ है इन्होंने हमें कैसा अमूल्य उपदेश दिया है !एक बिचित्र विपरीत क्रिया देखकर इन्हें रुलाई आती है यह कहते हैं कि,"अरे! ये सब प्राणी कैसे अज्ञान सागर में डूबे हैं । इस कालरूपी चक्की के गालों में डाले जाने पर भी ये बचने का उपाय क्यों नहीं करते ?क्या ये संसार चक्की का पराक्रम देखकर भी अंधे हो रहे हैं ।
संत की असहनीय पीड़ा देखकर "दंडी "स्वामी बोले "अरे प्राणियों "यह उपदेश अमूल्य है इस संसार चक्की के गालों में इस लोक के सब प्राणियों के साथ तुम,मैं, और ये महात्मा सब डाले जा चुके हैं । यह चक्की बड़े सपाटे से फिरती है इसमें वह दब गया , पिस गया ,वह नाश को प्राप्त हुआ ऐसी चिंता ज्वाला में हम पड़े हुए हैं इससे चेतो ! चेतो ! जितना हो सके चेतो,बचने का उपाय करो,आलस्य छोड़ दो,ये संत महात्मा बारम्बार हमें इस चक्की का उदाहरण लेने की सूचना करते हैं । भीतर पड़े हुए सारे कणों को पीस वाली चक्की की ऐसी नाशकारी क्रिया में भी एक और चमत्कार देखने में आता है ,हे अज्ञानी जीव देखो माया में लिपटे हुए आँखों के होते भी अंधे ! क्षन भर आँखे खोलकर देखो ! चक्की की उपर्युक्त कील के आस पास कुछ दाने बिलकुल नोक तक एकत्र हो गए हैं चक्की के इतनी जोर से फिरनेपर भी उन्हें पीड़ा नहीं हुई ,उनका नाश नहीं हुआ , मृत्यु नहीं हुई और वे बचे हुए हैं इसका कारण यही है कि कील के आश्रय से उन्हें चक्की का चक्र पीस नहीं सका ।
हे मनुष्यों ! हे पामर प्राणियों इस संसार चक्की का कील रूप कौन है ?
परब्रम्ह -परमात्मा सचराचर व्यापी अविनाशी प्रभु हैं। विचार कर देखो। उस महा चक्की के गलों में डाले जाने वाले कर्णो में से जो इस परब्रम्हरूप कील आश्रय लिए हैं वे नहीं पिसते ,उनका रक्षण अवश्य ही होता है इस संसाररुपी चक्की में ओयरे गए जीवों के लिए यही अभय स्थान हे प्राणियों !यदि काल के मुँह बचना हो , आत्मकल्याण करना हो तो सबके नियंता (प्रभु)परमात्मा का आश्रय लो, स्मरण करो उसी के बनाये हुए कल्याणकारक नियमों का पालन करो उसी के भक्त बनो और उसी के भक्तों का संग करो ,यदि तुम अपना तन,मन,धन उस परमात्मा को ही अर्पण कर तरह से उसी के होकर रहोगे तो तुम्हे ब्रह्म के दर्शन(साक्षात्कार) होंगे और उस ब्रह्म की कृपा होगी तो काल का भी भय नहीं होगा।
श्रुति (वेद)कहती है कि "आनन्दम ब्रह्मणों विद्धान बिभेति कदाचन " जो परब्रह्म के आनंद स्वरूप को जनता है वह कभी नहीं डरता है और वही बचा , वही जिया, तथा उसी का मोक्ष हुआ जानो ।
इतना कहकर सदगुरुदेव की जयध्वनि सहित वे दोनों महात्मा वहां से चले गए और उन सब लोगों ने उनके उपदेश से कल्याण प्राप्त किया ।
राजपुत्र मोहजित नेकहा "योगिराज यह मेरा सारा परिवार ,राजसभा, प्रजालोग,मैं और तुम सब इस काल चक्र में संसार चक्की के गलों में पड़े हुए हैं और समय आने प सबको एक-एक कर (अकेले ही)चले जाना है । इनमे से जो हरिरूप कील का आश्रय लेगा वह भी निर्भय होगा इसलिए संसार की सारी अभिलाषा छोड़ आप पल भर कुछ भगवत चर्चा कर अपने साथ होने वाले इस अलभ्य समागम को सफल करें।
इतना कहकर राजपुत्र मोहजित चुप हो गए । उसके ऐसे निर्मोहापन से अत्यन्त संतुष्ट योगी महात्मा ने लगातार उसे अनेक आशीर्वाद दिए ,परिवार की प्रसन्नता का भी हाल सुनाया ,परिवार को भी अनेक धन्यबाद दिए और शुभकामनाएं दीं । राजपुत्र , योगी को प्रणाम कर अपने नगर की और चले गए ।
बटुक बामदेव जी के मुह से मोहजित के परिवार का ऐसा विस्तृत और विचित्र इतिहास सुनकर ,उसका पिता ,राजा वरेप्सु और सभा के अन्य लोग चकित गए ।
शरणागत
नीलम सक्सेना
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