मरण केवल रूपान्तर है
ऐसा उत्तर सुनकर विस्मल हुए योगिराज उसे मोहजित की कुशलता बताकर वहां से मोहजीत के प्रिय मित्र के पास गए। वह मित्र उस योगी के मुँह से मोहजीत का मरणव्रत सुनकर बोला "अहो" मरण क्या है इस देह और आत्मा का दूध -पानी के समान द्रढ़ सम्बन्ध है वह अलग होकर उनका वियोग होना ही यहाँ मरण माना जाता है। देह मे अद्रश्य रूप से व्याप्त हुआ आत्मा अजर , अमर , अविनाशी है। क्या सत्य ही उसकी मृत्यु होती है ? पंचतत्वो का अविनाशीपन , अज्ञानता के सिवा सत्य कैसे माना जायेगा ? यथार्थ मे देखते इस जगत की किसी भी वस्तु का नाश नहीं होता केवल रूपान्तर या स्थानान्तर ही होता है । नाश कभी नहीं होता वैसे ही मेरे मित्र ने भी इस मांसादि के बने हुए मलमय शरीर को छोड़कर अपने किये कर्मो के अनुसार किसी उत्तम तेजस्वी देह को धारण किया होगा और उस पवित्र स्वर्गीय भूमि मे सुख से रहकर मेरे कल्याण की कामना करता होगा। इसलिए योगिराज ! इस संसार मरना और जन्म लेना सिर्फ जीवन का रूपांतर ही है।
शरणागत
नीलम सक्सेना
ऐसा उत्तर सुनकर विस्मल हुए योगिराज उसे मोहजित की कुशलता बताकर वहां से मोहजीत के प्रिय मित्र के पास गए। वह मित्र उस योगी के मुँह से मोहजीत का मरणव्रत सुनकर बोला "अहो" मरण क्या है इस देह और आत्मा का दूध -पानी के समान द्रढ़ सम्बन्ध है वह अलग होकर उनका वियोग होना ही यहाँ मरण माना जाता है। देह मे अद्रश्य रूप से व्याप्त हुआ आत्मा अजर , अमर , अविनाशी है। क्या सत्य ही उसकी मृत्यु होती है ? पंचतत्वो का अविनाशीपन , अज्ञानता के सिवा सत्य कैसे माना जायेगा ? यथार्थ मे देखते इस जगत की किसी भी वस्तु का नाश नहीं होता केवल रूपान्तर या स्थानान्तर ही होता है । नाश कभी नहीं होता वैसे ही मेरे मित्र ने भी इस मांसादि के बने हुए मलमय शरीर को छोड़कर अपने किये कर्मो के अनुसार किसी उत्तम तेजस्वी देह को धारण किया होगा और उस पवित्र स्वर्गीय भूमि मे सुख से रहकर मेरे कल्याण की कामना करता होगा। इसलिए योगिराज ! इस संसार मरना और जन्म लेना सिर्फ जीवन का रूपांतर ही है।
शरणागत
नीलम सक्सेना
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