संसार सराय है
योगिराज इस संसार मे कौन किसका भाई , कौन किसकी बहिन है ? कोई किसी का सगा या संगी नहीं है यह संसार सराय (मुसाफिर खाने ) के समान है । धर्मशाला मे अनेक पथिक आते है रात को रहकर , रात के दो क्षण का आनंद लेकर और सवेरा होते ही सब अपने-अपने स्थान को चले जाते है सिर्फ दो घड़ी का मेला है इसमें आने जाने का क्या शोक है ? जैसे पथिक का समागम क्षणिक है वैसे ही इस लोक के सम्बन्धी जनो का समागम भी क्षणिक ही है यह जगत एक बड़ा पथिकाश्रम अथवा पथिको के विश्राम करने की धर्मशाला है। सब मनुष्य रूप प्राणी इस धर्मशाला मे रात को विश्राम करने वाले पथिक है कोई कही से , कोई कही से आकर यहाँ पर एकत्रित होते है । आँखे पथिक जीव अपने- अपने कर्म भोगकर स्थिर की हुई आयु पूर्ण होते ही संसाररूप धर्मशाला को छोड़कर झटपट चले जाते है। महाराज हम सब इसी तरह मैं , मेरा भाई , मेरा परिवार , तुम ये प्राणिमात्र सब इस असार संसार की धर्मशाला मे उतरे हुए पथिक है और समय पूरा होते अपने -अपने रास्ते चले जाने वाले है । विश्राम के लिए एक वृक्ष पर आकर रात को बैठे हुए अनेक पक्षी प्रभात होते ही अपने -अपने रास्ते उड़ जाते है उनमे कौन किसका शोक करे ?
ऐसे उत्तर से प्रसन्न हुए योगिराज उस राजपुत्री मोहजिता से उसके भाई का कुशल समाचार कहकर वहाँ से मोहजिता के पास गए और उन्हें भी वह अशुभ समाचार कह सुनाया , राजा ने उनका आदर करते हुए अत्यन्त विनयपूर्वक इस तरह कहा।
शरणागत
नीलम सक्सेना
योगिराज इस संसार मे कौन किसका भाई , कौन किसकी बहिन है ? कोई किसी का सगा या संगी नहीं है यह संसार सराय (मुसाफिर खाने ) के समान है । धर्मशाला मे अनेक पथिक आते है रात को रहकर , रात के दो क्षण का आनंद लेकर और सवेरा होते ही सब अपने-अपने स्थान को चले जाते है सिर्फ दो घड़ी का मेला है इसमें आने जाने का क्या शोक है ? जैसे पथिक का समागम क्षणिक है वैसे ही इस लोक के सम्बन्धी जनो का समागम भी क्षणिक ही है यह जगत एक बड़ा पथिकाश्रम अथवा पथिको के विश्राम करने की धर्मशाला है। सब मनुष्य रूप प्राणी इस धर्मशाला मे रात को विश्राम करने वाले पथिक है कोई कही से , कोई कही से आकर यहाँ पर एकत्रित होते है । आँखे पथिक जीव अपने- अपने कर्म भोगकर स्थिर की हुई आयु पूर्ण होते ही संसाररूप धर्मशाला को छोड़कर झटपट चले जाते है। महाराज हम सब इसी तरह मैं , मेरा भाई , मेरा परिवार , तुम ये प्राणिमात्र सब इस असार संसार की धर्मशाला मे उतरे हुए पथिक है और समय पूरा होते अपने -अपने रास्ते चले जाने वाले है । विश्राम के लिए एक वृक्ष पर आकर रात को बैठे हुए अनेक पक्षी प्रभात होते ही अपने -अपने रास्ते उड़ जाते है उनमे कौन किसका शोक करे ?
ऐसे उत्तर से प्रसन्न हुए योगिराज उस राजपुत्री मोहजिता से उसके भाई का कुशल समाचार कहकर वहाँ से मोहजिता के पास गए और उन्हें भी वह अशुभ समाचार कह सुनाया , राजा ने उनका आदर करते हुए अत्यन्त विनयपूर्वक इस तरह कहा।
शरणागत
नीलम सक्सेना
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