Friday, 3 February 2017

जगत घटमाल के समान है

जगत घटमाल के समान है 

यह सुन योगिराज संतुष्ट हो , उनको पुत्र की कुशलता बतला कर मोहजीत की माता के पास गए और उन्हें भी अशुभ समाचार बताया। माता ने योगीन्द्र से आदरपूर्वक कहा योगिराज आपने क्या नई बात कही ? यह संसार तो घटमाल के समान है जैसे कुँए से पानी निकालने की घटमाल जिसे रहट कहते है रहट के ऊपर मिटटी के घड़ो की माला पड़ी रहती है वह चक्र की गति से फिरती है वह माला पानी मे जाकर पानी से भर जाते है और सीधे मुँह ऊपर जाकर खाली हो जाते है। बार -२ यही क्रिया करते है उनका क्रम जारी रहता है। नीचे जाते है , ऊपर आते है , भर जाते है , खाली हो जाते है।
उसी तरह यह जगत भी एक घटमाल है उसमे बारम्बार प्राणियों का एक देह से दूसरी देह मे जन्म मरण रूप भरना निकलना हुआ ही करता है। स्त्री गर्भवती होती है , प्रसव करती है फिर गर्भिणी होती है और प्रसव करती है। फिर पैदा हुआ बालक मरे या जिए वह उसके भाग्याधीन है यह सारा संसार इसी नियमानुसार जन्मता मरता है महाराज हम सबकी दशा यही है। 
                    जिस प्राणी की भव वासना रूप डोर टूट जाती है वह प्राणी परमानन्द रूप महा अगाध जल मे निमग्न होकर अचल सुख भोगता है यही मुक्त जीव है सबसे सुगम उपाय यही है कि "श्री हरि के चरणों का अनन्य आश्रय हो " योगिराज हम सब प्रभु को भजे - वासना तजे और सारग्राही बने , बस जिस लिए आपको हम सबको खेद होता है वह मिट जायेगा ।

                     

                                                                                                            शरणागत 
                                                                                                       नीलम सक्सेना 

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