जो जन्मा है वह जायेगा ही
राजपुत्र के चले जाने के बाद योगिराज विचार करने लगे कि चाहे जितना मोहजीत पन हो परन्तु जब तक अपने ऊपर आफत नहीं आती , तभी तक है । भाई मरा उसमे इसका क्या सोचा होगा भाई गया तो हिस्सेदार गया इसको तो उल्टा निष्कंटक राज्य मिला इसलिए भाई के मरण से इसे क्यों शोक हो ।
स्वामी के मरने का सच्चा शोक तो उसकी स्त्री को होता है । स्त्री उसका आधा अंग मानी जाती है इसलिए अब देखना चाहिए कि मोहजित की स्त्री की कैसी दशा है । ऐसा विचार कर वह नगर मे घुसा। रास्ते मे उसे एक सुन्दर नाव यौवना मिली। योगी ने उससे पूछा "बाले" तू कौन है और हाथ मे डलिया लिए कहाँ जा रही है ? वह स्त्री योगिराज को प्रणाम कर बोली , मैं इस राजकुटुम्ब की एक दासी हूँ और मोहजीत राजा के छोटे पुत्र की पत्नी के लिए, ईश्वर की सेवा मे काम आने वाले सुन्दर फूलों को लाने के लिए बागो मे जाती है। योगी ने कहा ,कि क्या तू नहीं जानती एक महा शोककारक घटना ! दासी बोली , नहीं कृपा कर मुझे बताइये । तब योगी ने राजपुत्र की मृत्यु का समाचार कहा ,उसे सुनकर दासी बोली ,"महाराज इसमें शोक कारक कौन सी बात है ? हर्ष और शोक तो उस अज्ञानी पुरुष को होता है जो संसार की झूठी माया मे मोहित होता है। यह सारा संसार विनाशी है विचार कर देखो तो प्रत्येक स्थावर -जंगम प्राणी और पदार्थ की गति काल के वश होने से प्रतिक्षण बदलती रहती है । बीज बोया जाता है ,अंकुर फूटते है ,उसका कोमल वृक्ष होता है ,समय आने पर उसी मे फूल आते है और फलता पकता है फिर आप ही आप सूखने लगता है । इसी तरह पशु, पक्षी, और मनुष्य की भी दशा जानो ।
सारा संसार काल का ग्रास रूप है।
योगिराज आप हमारे राजकुमार का जो समाचार कहते है उसका क्या शोक करे ? सारा विश्व ही विनाशी और क्षण भंगुर है । मेरी आपकी ,सारे राजकुटुंब की सब जगत की अंत मे यही गति है तो फिर आप मिथ्या शोक छोड़कर व्यर्थ परिश्रम न करे , सुख से अपने घर पधारे । दासी के ऐसे निर्मोही वचन सुनकर योगिराज चकित होकर बोले "बाला तेरे निर्मोहीपन को धन्य है तेरा कल्याण हो । दासी ने साधू को प्रणाम किया और पुष्प लेने चली गयी ।
महात्मा ने विचार किया कि राजपुत्र का शोक दासी को क्यों होगा वह तो ज्ञान की ऐसी बात करेगी ही ,ऐसा सोचकर योगिन्द्र राजमहल मे गए और अंतःपुर मे जाकर मोहजित की स्त्री से मिले।
शरणागत
नीलम सक्सेना
राजपुत्र के चले जाने के बाद योगिराज विचार करने लगे कि चाहे जितना मोहजीत पन हो परन्तु जब तक अपने ऊपर आफत नहीं आती , तभी तक है । भाई मरा उसमे इसका क्या सोचा होगा भाई गया तो हिस्सेदार गया इसको तो उल्टा निष्कंटक राज्य मिला इसलिए भाई के मरण से इसे क्यों शोक हो ।
स्वामी के मरने का सच्चा शोक तो उसकी स्त्री को होता है । स्त्री उसका आधा अंग मानी जाती है इसलिए अब देखना चाहिए कि मोहजित की स्त्री की कैसी दशा है । ऐसा विचार कर वह नगर मे घुसा। रास्ते मे उसे एक सुन्दर नाव यौवना मिली। योगी ने उससे पूछा "बाले" तू कौन है और हाथ मे डलिया लिए कहाँ जा रही है ? वह स्त्री योगिराज को प्रणाम कर बोली , मैं इस राजकुटुम्ब की एक दासी हूँ और मोहजीत राजा के छोटे पुत्र की पत्नी के लिए, ईश्वर की सेवा मे काम आने वाले सुन्दर फूलों को लाने के लिए बागो मे जाती है। योगी ने कहा ,कि क्या तू नहीं जानती एक महा शोककारक घटना ! दासी बोली , नहीं कृपा कर मुझे बताइये । तब योगी ने राजपुत्र की मृत्यु का समाचार कहा ,उसे सुनकर दासी बोली ,"महाराज इसमें शोक कारक कौन सी बात है ? हर्ष और शोक तो उस अज्ञानी पुरुष को होता है जो संसार की झूठी माया मे मोहित होता है। यह सारा संसार विनाशी है विचार कर देखो तो प्रत्येक स्थावर -जंगम प्राणी और पदार्थ की गति काल के वश होने से प्रतिक्षण बदलती रहती है । बीज बोया जाता है ,अंकुर फूटते है ,उसका कोमल वृक्ष होता है ,समय आने पर उसी मे फूल आते है और फलता पकता है फिर आप ही आप सूखने लगता है । इसी तरह पशु, पक्षी, और मनुष्य की भी दशा जानो ।
सारा संसार काल का ग्रास रूप है।
योगिराज आप हमारे राजकुमार का जो समाचार कहते है उसका क्या शोक करे ? सारा विश्व ही विनाशी और क्षण भंगुर है । मेरी आपकी ,सारे राजकुटुंब की सब जगत की अंत मे यही गति है तो फिर आप मिथ्या शोक छोड़कर व्यर्थ परिश्रम न करे , सुख से अपने घर पधारे । दासी के ऐसे निर्मोही वचन सुनकर योगिराज चकित होकर बोले "बाला तेरे निर्मोहीपन को धन्य है तेरा कल्याण हो । दासी ने साधू को प्रणाम किया और पुष्प लेने चली गयी ।
महात्मा ने विचार किया कि राजपुत्र का शोक दासी को क्यों होगा वह तो ज्ञान की ऐसी बात करेगी ही ,ऐसा सोचकर योगिन्द्र राजमहल मे गए और अंतःपुर मे जाकर मोहजित की स्त्री से मिले।
शरणागत
नीलम सक्सेना