Tuesday, 24 January 2017

सुख की शोध

सुख की शोध 

नगर छोड़कर वह एकांत जंगल मे एक घने वृक्ष के नीचे जाकर बैठ गया और बीतने वाली अनेक दुर्घटनाओ से मुर्ख बनकर आगे पीछे के सब प्रसंग तथा आये हुए दुःखो को याद कर जोर -जोर से रोने लगा जब शांत हुआ तो विचार करने लगा अहो इस विश्वारण्य मे क्या सुख है ही नहीं।  क्या "शान्तिसेन का कहना सत्य है"परन्तु मुझको विश्वास कैसे हो यह लाखो हजारो मनुष्य जो सुख मे डोलते रहते है क्या सुखी नहीं है शायद यह सुख देवाधीन हो तो अपने दैव को अनुकूल करने के लिए मुझे यत्न करना चाहिए। ऐसा निश्चय करके उसने संसार सुख प्राप्ति के लिए एकांत वन मे जा सुख के अगाध सिंधुरूप "श्री भगवान शंकर " को प्रसन्न करने के लिए उग्र तप आरम्भ कर दिया। पहले उसने वन फल खाकर ,फिर फूल और पत्र ,उसके बाद जलाहार लेकर तप किया । शरीर मे सिर्फ रक्त माँस और हड्डियां शेष रह गई। वह अस्थि पिंजर मात्र रह गया। ऐसे उग्रतप से भगवान शिव प्रसन्न हुए और परिवार सहित सुख की कामना वाले विलास को दर्शन दिए और कहा भक्त तुझ पर मैं प्रसन्न हुआ हूँ इसलिए तेरी जो इच्छा हो वह माँग ले "उमापति" को देखकर विलासवर्मा प्रसन्न हुआ और साष्टांग नमस्कार कर बोला " प्रभो देवो के देव महादेव " आज मैंने आपके दर्शन पाए इससे मुझ पापी के भाग्य का पार नहीं हैं। ईश्वर आप अन्तर्यामी है इससे सबके मन की जानते है परन्तु आज्ञा करते है तो माँगता हूँ "देव" इस जगत मे सबको सुख देने वाले आप है और मैं सुख पाने की इच्छा से अनेक उपाय करके हार गया हूँ तो भी आपकी कृपा बिना सुख प्राप्त नहीं कर सका इससे कृपा कर अब मुझे इस विश्वारण्य का सर्वोत्तम सुख दो ऐसे वचन सुनकर आयुष्य , विघा ,बल इत्यादि मे से जो कुछ अच्छा लगे वह मांग ले परन्तु जो तू सर्वोत्तम सुख माँगता है वह तो निराला सुख संसार के बनाने वाले ने इस संसार मे पैदा ही नहीं किया। तू जैसा सुख मांगता है वह तो संसार मे है ही नहीं । संसार मे जो सुख माना जाता है वह सब सुख धन, राज्यादि समृद्धियों के अंग है इसलिए कौन सा सुख तुझे दूँ ।  राजा बोला प्रभो इनमे जो सर्वोत्तम सुख है वह मुझे दो। शिवजी ने कहा राजन इन्द्रियों से भोगे जाने वाले ये सब विषयसुख बराबर है अर्थात ये सुख अनुभव करने वालो को समान ही आनंद देते है इसलिए जगत मे तुझको जिसका जो सुख उत्तम लगता हो उसके जैसा सुख मांग ले। राजा ने कहा "कृपानाथ"  ऐसा  उत्तम सुखी कौन होगा यह मैं नहीं जानता इसलिए आपकी आज्ञा हो तो मैं संसार मे भ्रमण कर आऊं फिर सुखी जीव जैसा सुख मांगूंगा। 
शिव बाबा बोले "अस्तु" अपने इच्छीत सुख की खोज कर फिर से इसी जगह आकर "मेरी याद करना" मैं तुझको वर दूँगा । ऐसा कहकर "श्री भोलेनाथ बाबा शिवशंकर  " भगवन उसी समय अंतर्ध्यान हो गए और राजा उन्हें प्रणाम कर जगत मे सबसे श्रेष्ठ सुख की खोज करने को चला। 

















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