आत्मा का अनुभव
मैं कौन हूँ और कैसा हूँ यह जाने की उत्कण्ठा हुई क्या कहूँ "गुरुदेव" वहाँ प्रकाशित होने वाला प्रकाश और मैं एक ही जान पड़ा उससे मैं जरा भी भिन्न नहीं था उसमें और मुझमें जरा भी भेद नहीं था मैं भी वही आनंदरूप! दिव्य, तेजोमय जान पड़ा। कभी मैं अपनी और कभी उसकी ओर देखता परंतु उसमे और मुझमें कुछ भी भेद मालूम नहीं हुआ। अहा मेरा स्वरूप ऐसा , ऐसा जानकर मेरे ह्रदय के सारे संदेह दूर हो गए मेरी कोई भी इच्छा शेष नहीं रही ।
मैं और इन्द्र दोनों प्रसन्न हुए हमारा अटका हुआ विमान अचानक चलने लगा अचानक विमान की गति भंग हो गई मैं घबराहट से बिलकुल विचलित हो गया थोड़ी देर मे मुझको मानो किसी ने उछालकर फेक दिया हो और मैं धड़ाम से नीचे आ गिरा इसके बाद मेरा और इन्द्र के विमान का समागम नहीं हुआ मेरा क्या हुआ किस तरह मैं यहाँ आया यह मैं नहीं जानता ।
राजा का यह अदभुद वृतांत सुनकर ,रानी,प्रजा,सेवक,ऋषिमुनि सब जनसमूह आनंद सहित आश्चर्य मे डूब गए सबके ह्रदय का आनंद चेहरे पर झलकने लगा सारे यज्ञ स्थान मे मंगल छा गया । ऐसा देखकर जय गुरुदेव की गर्जना करते हुए राजा बटुकजी के श्रीचरणों मे गिर पड़ा । जय जय की ध्वनि सारे यज्ञस्थान मे गूंजने लगी सारा जनसमूह भक्ति भाव से उस ब्रह्मचारी को हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर प्रणाम करने लगे ।
बटुकजी हँस कर बोले अब तूने जाना कि तू कौन है,और कैसा है ,तेरा संदेह दूर हुआ ?
राजा ने कहा " गुरुदेव" आपके चरणों की कृपा से मैं अपने स्वरुप को जान सका ।
शरणागत
नीलम सक्सेना
मैं कौन हूँ और कैसा हूँ यह जाने की उत्कण्ठा हुई क्या कहूँ "गुरुदेव" वहाँ प्रकाशित होने वाला प्रकाश और मैं एक ही जान पड़ा उससे मैं जरा भी भिन्न नहीं था उसमें और मुझमें जरा भी भेद नहीं था मैं भी वही आनंदरूप! दिव्य, तेजोमय जान पड़ा। कभी मैं अपनी और कभी उसकी ओर देखता परंतु उसमे और मुझमें कुछ भी भेद मालूम नहीं हुआ। अहा मेरा स्वरूप ऐसा , ऐसा जानकर मेरे ह्रदय के सारे संदेह दूर हो गए मेरी कोई भी इच्छा शेष नहीं रही ।
मैं और इन्द्र दोनों प्रसन्न हुए हमारा अटका हुआ विमान अचानक चलने लगा अचानक विमान की गति भंग हो गई मैं घबराहट से बिलकुल विचलित हो गया थोड़ी देर मे मुझको मानो किसी ने उछालकर फेक दिया हो और मैं धड़ाम से नीचे आ गिरा इसके बाद मेरा और इन्द्र के विमान का समागम नहीं हुआ मेरा क्या हुआ किस तरह मैं यहाँ आया यह मैं नहीं जानता ।
राजा का यह अदभुद वृतांत सुनकर ,रानी,प्रजा,सेवक,ऋषिमुनि सब जनसमूह आनंद सहित आश्चर्य मे डूब गए सबके ह्रदय का आनंद चेहरे पर झलकने लगा सारे यज्ञ स्थान मे मंगल छा गया । ऐसा देखकर जय गुरुदेव की गर्जना करते हुए राजा बटुकजी के श्रीचरणों मे गिर पड़ा । जय जय की ध्वनि सारे यज्ञस्थान मे गूंजने लगी सारा जनसमूह भक्ति भाव से उस ब्रह्मचारी को हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर प्रणाम करने लगे ।
बटुकजी हँस कर बोले अब तूने जाना कि तू कौन है,और कैसा है ,तेरा संदेह दूर हुआ ?
राजा ने कहा " गुरुदेव" आपके चरणों की कृपा से मैं अपने स्वरुप को जान सका ।
शरणागत
नीलम सक्सेना
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