Monday, 30 January 2017

बटुक कौन है

बटुक कौन है 

"ज्ञानी द्रष्टा के समान सम्पूर्ण मिथ्या पदार्थो को देखते है फिर भी इन्हें  बंधन नहीं होता ,मुक्ति नहीं होती , परमात्मन भी नही होता , और न ही जीव पन ही होता है अर्थात वे सबसे अलिप्त रहते है "। 

      इस समय सबके मे संदेह है कि इतनी बड़ी ईश्वरी शक्ति वाला यह बालक कौन और किसका पुत्र है इतने मे एक कौतुक हुआ यज्ञशाला मे एक वृद्ध ऋषि दौड़ते हुए आते दिखाई दिए। ऊँचे सिंघासन पर बैठे बटुकजी को देखकर हे पुत्र ! हे पुत्र के संबोधन से पुकारने लगे उन्होंने बटुकजी को अपनी बाहो मे भरकर गले लगा लिया और बोले - हे प्रिये पुत्र तू जन्मते ही ऐसा निर्दयी क्यों बन गया ? तुझे इस वृद्ध माता -पिता पर दया नहीं आई तू घर जाकर अपनी वियोगिनी माता के ह्रदय को शांत कर ,ऐसा कहते हुए वृद्ध मुनि बटुकजी को उठाने लगे, परन्तु बटुकजी नहीं उठे ,मुनि बोले पुत्र तू इस वृद्ध पिता को क्यों दुखी करता है तेरी माता ने अन्न जल त्याग दिया है और अगर तुझसे वियोग अधिक समय तक रहेगा तो वह अपने प्राण त्याग देगी । वत्स हम दोनों तुझे प्राणों से भी अधिक प्रिय मानते है तेरी माता ने पुत्र सुख पाने के लिए अनेक कठिन तप ,व्रत आदि अनेक कष्ट सहकर तुझे बुढ़ापे मे प्राप्त किया है उसका क्या यही फल है।  

        बटुकजी बोले - अहोऋषिवर्य ! आप इतने अधीर क्यों है ? आपको यह कैसा मोह हुआ है ऋषिदेव इस संसार मे कौन पिता - कौन पुत्र - घर किसका - वार किसका , आप महा मोह सागर मे पड़े हुए है आप नहीं जानते कि यह जगत रूप कार्य सर्वमिथ्या है और सब व्यव्हार भी झूठे है यह सुनकर ऋषि ने कहा कि तू जो कुछ कहता है वह सब सत्य है परन्तु यह ज्ञान अभी किस काम है ? ये बाते तेरे जैसे बालक के काम की नहीं है तूने तो अभी माता पिता का लाड प्यार ,बालक्रीड़ा ,हमारी गोद मे बैठकर मीठी-मीठी द्धारा हमारे मन को संतुष्ट नहीं किया है। "यज्ञ नारायण के पूर्ण प्रसाद से तू उत्पन्न हुआ" इसलिए जन्मते ही आठ वर्ष का दिखा , तू तो बालक है अभी तो तुझे वेदों का अध्ययन करना है ,विवाह करके गृह्स्ताश्रम का सुख भोगकर, पत्नी के साथ, धर्मकार्य ,सत्कर्म करना, पुत्र का पिता बनना ,विषय सुख से शांत होकर फिर परमात्मा का स्वरुप का विचार करने के लिए वानप्रस्थ आश्रम ग्रहण करना अभी यह पागलपन छोड़कर घर जाकर अपनी प्रेम करनेवाली माता के हृदय के शोक को दूर कर ॥ 

    
                                                                                                             शरणागत 
                                                                                                          नीलम सक्सेना          



















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