ब्याहे को पीड़ा और कुँवारे को लालसा
एक रात को विलास ने एक हट्टे -कट्टे जवान को सुन्दर कपडे पहने हुए एक तंबोली की दुकान के आगे खड़ा हुआ देखा । विलास अपने मन को संतुष्ट करने के लिए उनके पास गया और एक ओर छिपकर खड़ा हो गया इतने मे वह दूसरे युवा मित्र से कहने लगा आजकल तुम दिखाई नहीं देते , वह बोला भाई तुम जानते हो उसके बिना मेरी क्या दशा क्या है जबसे उसको देखा है तब से नींद नहीं आती और न ही अन्न भाता है किसी भी उपाय से उसके साथ मेरा विवाह हो जायेगा तब मुझे चैन पड़ेगा । उसका मित्र सर पर हाथ रखकर बोला भाई क्या कहूँ "ब्याह का लड्डू खाय वह भी पछताय , न खाये वह भी पछताय " जब तक ब्याह नहीं हुआ तब तक तुम्हारी ही भांति मुझको भी मालूम होता था कि जो कुछ सुख है वह सब विवाह करके संसार सुख भोगने ,पुत्रो को प्यार करने और विवाह कर पोषण करने मे है परन्तु अब सब मनोरथ पूरा हुआ जैसे बड़ा कोई कैदी हो उस तरह मैं अनेक तरह की सांसारिक बेड़ियो से जकड़ा हुआ है क्या करूँ शास्त्र की आज्ञा माननी पड़ती है नहीं तो इन सारे प्रपंचो को छोड़कर त्यागी बन जाता। विलास इतने से ही दुःखित होकर बोला यह तो दोनों ही महादुःखी दिखाई देते है विचार करने लगा इन दोनों की बातें सुनने से वास्तव मे ऐसा लगता है मानो गृहस्थाश्रम मे जरा भी सुख नहीं है इसलिए संसार को त्याग कर उपाधिहीन होने मे ही सुख भरा होगा ।
शरणागत
नीलम सक्सेना
एक रात को विलास ने एक हट्टे -कट्टे जवान को सुन्दर कपडे पहने हुए एक तंबोली की दुकान के आगे खड़ा हुआ देखा । विलास अपने मन को संतुष्ट करने के लिए उनके पास गया और एक ओर छिपकर खड़ा हो गया इतने मे वह दूसरे युवा मित्र से कहने लगा आजकल तुम दिखाई नहीं देते , वह बोला भाई तुम जानते हो उसके बिना मेरी क्या दशा क्या है जबसे उसको देखा है तब से नींद नहीं आती और न ही अन्न भाता है किसी भी उपाय से उसके साथ मेरा विवाह हो जायेगा तब मुझे चैन पड़ेगा । उसका मित्र सर पर हाथ रखकर बोला भाई क्या कहूँ "ब्याह का लड्डू खाय वह भी पछताय , न खाये वह भी पछताय " जब तक ब्याह नहीं हुआ तब तक तुम्हारी ही भांति मुझको भी मालूम होता था कि जो कुछ सुख है वह सब विवाह करके संसार सुख भोगने ,पुत्रो को प्यार करने और विवाह कर पोषण करने मे है परन्तु अब सब मनोरथ पूरा हुआ जैसे बड़ा कोई कैदी हो उस तरह मैं अनेक तरह की सांसारिक बेड़ियो से जकड़ा हुआ है क्या करूँ शास्त्र की आज्ञा माननी पड़ती है नहीं तो इन सारे प्रपंचो को छोड़कर त्यागी बन जाता। विलास इतने से ही दुःखित होकर बोला यह तो दोनों ही महादुःखी दिखाई देते है विचार करने लगा इन दोनों की बातें सुनने से वास्तव मे ऐसा लगता है मानो गृहस्थाश्रम मे जरा भी सुख नहीं है इसलिए संसार को त्याग कर उपाधिहीन होने मे ही सुख भरा होगा ।
शरणागत
नीलम सक्सेना
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