Tuesday, 24 January 2017

अनेकानुभव

अनेकानुभव 

विलास पहले प्रत्येक वर्ण के सुख की खोज करने लगा। इस विश्वारण्य मे ब्रह्मवेत्ता मुनिगण सबसे श्रेष्ठ और पवित्र कहलाते है परंतु उनके समान दुःखी कोई भी नहीं सुख का तो उनके पास नाम भी नहीं है । उनको शांति से खाने ,पीने ,बैठने ,सोने या बातचीत करने का भी अवकाश नहीं मिलता। वे नित्य अपने कर्म उपासना वेदाध्ययन ,जप,तप और यज्ञयागादिको मे लगे रहते यह तो स्वयं शुभमतिगिरी पर मैंने देखा और अनुभव किया है। 

  क्षत्रिय वर्ण के राजा जो सुख भोगते है वह सब साधन मेरे पास भी थे परन्तु राज सुख की झलक के सिवा अधिक सुख नहीं प्राप्त कर सका। इसमें सुख कम दुःख का अपार सागर भरा है इसलिए यह सुख भी मुझे नहीं चाहिए यह भी मैंने स्वयं भोगा है।  
 
ऐसा निश्चय कर राजा विलासवर्मा एक साधारण मनुष्य के वेश मे सुखी मनुष्य की खोज करने को अनेक देश ,नगर ,वन , गाँव और रमणीक स्थानों मे भ्रमण करते हुए एक बड़े समृद्धि से पूर्ण शहर मे जा पहुँचा। उसने चारो ओर देखा सोचने लगा यहाँ तो सभी सुखी है दुःख का नाम भी सुनने मे नहीं आता यह तो सुख का ही नगर है इसमें अब यह देखना है कि सबसे सुखी कौन है और उस जैसा सुख का वर शिवशंकर से मांगूँगा।  

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