
वरेप्सु के राज्य का दौरा पूरा हो गया था राजा जल्दी से विश्वपुरी मे आया और अश्वमेघ का कार्य हाथ मे लिया
उसने निमंत्रण भेजकर अनेक ऋषियों को बुलवाया और विचार किया कि अश्वमेघ यज्ञ कब और कैसे हो ?
सबकी सलाह से अच्छा सा मुहूर्त निकलवाकर विद्धान शिल्पी और याज्ञीकों की देखरेख मे यज्ञशाला बनवाने का काम प्रारम्भ किया अनेक स्थान से खोजकर श्याम वर्ण घोडा लाने के लिए चतुर घोड़े पालने वालो के लिए भेजा।
सैनिको और सेनापतियों को आज्ञा दी कि यज्ञ के अश्व की रक्षा के लिए मौका आने पर भारी लड़ाई भी करनी पड़ सकती है इसलिए तैयार रहना युद्ध के सामान के साथ ।
श्याम वर्ण अश्व मिला सामान एकत्र हुआ यज्ञशाला तैयार हुई मुहूर्त का दिन आ पंहुचा वरेप्सु ने यज्ञ दीक्षा ली और घोडा लेकर देश देशान्तरों को चला कुशल यज्ञ के पुजारियो का वरण कर यज्ञ का काम प्रारम्भ किया।
होम करके देवो को तृप्त कर, ब्राह्मणों को धन ,वस्त्र ,भोजन से तृप्त कर वरेप्सु ने एक-एक करके निन्यानवे यज्ञ पूरे किये ।
यज्ञ के मण्डप से लंबी चौड़ी भूमि घिर थी सभी अदभुद ईश्वरी भाव मे मग्न हो रहे थे पूर्ण यज्ञशाला मानों एक रसरूप होकर आनंद मे हिलोरे ले रही थी यज्ञशाला से धक्-धक् कर जलती हुई अग्नि से ज्वालायें निकल रही थी। स्वाहा -स्वाहा शब्द की भारी गर्जना हो रही थी।
यज्ञशाला मे भारी भीड़ हो गई। जयजयकार के शब्दो से महाघोष हो रहा था पूर्ण आहुति की तैयारी थी -------
उसी समय एक बड़ा कौतुक हुआ । एक बड़ा आश्चर्य हुआ ।
शरणागत
नीलम सक्सेना
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