आम का कुटुम्ब
राजपुत्र ने योगी से कहा "योगेंद्र ! आप सामने की ओर देख रहे है वह आम का वृक्ष सुन्दर आम के पके हुए फलो से झुक रहा है परंतु देखो कैसा धूल उड़ाता हुआ बवंडर आया और देखते ही देखते ढेर के ढेर गुच्छे नीचे आ पड़े । मोहिजित बोला अरे यह कैसा संहार हो गया ? क्षण भर मे क्या हो गया कितना अनर्थ हो गया ? यह सुन योगी बोले राजपुत्र यह कैसी बाते करते हो वह बोला यह तो जड़ के समान है और इन सबकी यही दशा है इसलिए इनको शोक ही नहीं है।
राजपुत्र ने कहा मोहवश मुनिराज आप धन्य हो आपने मुझको कृतार्थ किया योगीन्द्र जैसे यह मरते है वैसे ही हम भी ,जब इनकी गति यही है तो हमारी भी यही है हमें भी इसी मार्ग मे जाना है न जाने किस समय जगनियंता का परवाना आ जायेगा क्या हमे इसकी चिंता करनी चाहिए। आप योगी होकर भी अयोगी के समान मुझे मोह मे डालने वाले वचन क्यों कहते हो ।
"जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु ध्रुवो ,जन्म मृतस्य च ।"
"जिसने जन्म लिया है वह अवश्य मरेगा जो मरा है वह अवश्य जन्म लेगा "
जब ईश्वरी नियम ही ऐसा है तो फिर उसमे क्या शोक है । जो होना था वह अच्छा ही हुआ उसकी चिंता त्याग कर आप सुख से अपने आश्रम मे जाये और मुझको भी आज्ञा दे ।
राजपुत्र की ऐसी निस्पृहता देख कर योगी विस्मित हो गए और आशीर्वाद देकर कहने लगे तेरे मोहजित नाम को धन्य है तेरा कल्याण हो ।
शरणागत
नीलम सक्सेना
राजपुत्र ने योगी से कहा "योगेंद्र ! आप सामने की ओर देख रहे है वह आम का वृक्ष सुन्दर आम के पके हुए फलो से झुक रहा है परंतु देखो कैसा धूल उड़ाता हुआ बवंडर आया और देखते ही देखते ढेर के ढेर गुच्छे नीचे आ पड़े । मोहिजित बोला अरे यह कैसा संहार हो गया ? क्षण भर मे क्या हो गया कितना अनर्थ हो गया ? यह सुन योगी बोले राजपुत्र यह कैसी बाते करते हो वह बोला यह तो जड़ के समान है और इन सबकी यही दशा है इसलिए इनको शोक ही नहीं है।
राजपुत्र ने कहा मोहवश मुनिराज आप धन्य हो आपने मुझको कृतार्थ किया योगीन्द्र जैसे यह मरते है वैसे ही हम भी ,जब इनकी गति यही है तो हमारी भी यही है हमें भी इसी मार्ग मे जाना है न जाने किस समय जगनियंता का परवाना आ जायेगा क्या हमे इसकी चिंता करनी चाहिए। आप योगी होकर भी अयोगी के समान मुझे मोह मे डालने वाले वचन क्यों कहते हो ।
"जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु ध्रुवो ,जन्म मृतस्य च ।"
"जिसने जन्म लिया है वह अवश्य मरेगा जो मरा है वह अवश्य जन्म लेगा "
जब ईश्वरी नियम ही ऐसा है तो फिर उसमे क्या शोक है । जो होना था वह अच्छा ही हुआ उसकी चिंता त्याग कर आप सुख से अपने आश्रम मे जाये और मुझको भी आज्ञा दे ।
राजपुत्र की ऐसी निस्पृहता देख कर योगी विस्मित हो गए और आशीर्वाद देकर कहने लगे तेरे मोहजित नाम को धन्य है तेरा कल्याण हो ।
शरणागत
नीलम सक्सेना
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