मोहजीत कुटुम्ब
निर्मोहा नगरी का एक राजपुत्र अपने साथियो के साथ वन विहार करने को निकला वन मे भ्रमण करते हुए उसे एक स्वच्छ और सुन्दर लताओं से छाई हुई पूर्णशाला दीख पड़ी । वहाँ पर उसे एक वृद्ध योगी दिखाई दिए । वह राजपुत्र को देखकर बाहर आये और आदरसहित अंदर ले जाकर आसन पर बैठने के लिए बोले , तत्पश्चात बोले तुम्हारा नाम क्या है और किस देश मे रहने वाले हो ? राजपुत्र प्रणाम करके बोला " मैं महाराज मोहजीत का पुत्र हूँ और मेरा नाम भी मोहजीत है। मेरे पिता की राजधानी निर्मोहा नाम नगरी है"।
यह सुन विस्मित होकर योगिराज बोला क्या तेरा नाम मोहजीत है मोहजीत तो वह कहलाता है जिसने मोहरूप शत्रु को जीत लिया हो पर यह मोह तो जगत के जीव मात्र का परम शत्रु और मायाशक्ति का सगा भाई है इसलिए माया से व्याप्त जगत मे मोहरहित कौन हो सकता है जहाँ माया वहाँ मोह अवश्य ही है । जिसने मोह जीता उसने सारा संसार जीता और जो पुरुष मोह माया से मुक्त है उसे साक्षात् "हरि का सानिध्य है " मोह पर विजय प्राप्त करने वाला जीव तो विश्व मे बिरला ही होता है ।
यह सुन राजपुत्र बोला मेरा सारा कुटुम्ब और वंश मोहजित ही है । यह बात योगिराज के हृदय मे नहीं बैठी । यह क्षत्रिय कुमार अपना सारा परिवार मोह रहित बताता है । इसके नगर का नाम भी निर्मोही नगरी है इससे जान पड़ता है कि यह सारा नगर ही मोहजीत होगा क्या यह सब सत्य होगा , यह सब प्रत्यक्ष देखकर अपना संशय दूर करूँगा ऐसा सोचकर महायोगी अपनी अदभुद योगशक्ति के द्धारा पलभर मे निर्मोही नगरी के भूभाग मे जा खड़े हुए ।
शरणागत
नीलम सक्सेना
निर्मोहा नगरी का एक राजपुत्र अपने साथियो के साथ वन विहार करने को निकला वन मे भ्रमण करते हुए उसे एक स्वच्छ और सुन्दर लताओं से छाई हुई पूर्णशाला दीख पड़ी । वहाँ पर उसे एक वृद्ध योगी दिखाई दिए । वह राजपुत्र को देखकर बाहर आये और आदरसहित अंदर ले जाकर आसन पर बैठने के लिए बोले , तत्पश्चात बोले तुम्हारा नाम क्या है और किस देश मे रहने वाले हो ? राजपुत्र प्रणाम करके बोला " मैं महाराज मोहजीत का पुत्र हूँ और मेरा नाम भी मोहजीत है। मेरे पिता की राजधानी निर्मोहा नाम नगरी है"।
यह सुन विस्मित होकर योगिराज बोला क्या तेरा नाम मोहजीत है मोहजीत तो वह कहलाता है जिसने मोहरूप शत्रु को जीत लिया हो पर यह मोह तो जगत के जीव मात्र का परम शत्रु और मायाशक्ति का सगा भाई है इसलिए माया से व्याप्त जगत मे मोहरहित कौन हो सकता है जहाँ माया वहाँ मोह अवश्य ही है । जिसने मोह जीता उसने सारा संसार जीता और जो पुरुष मोह माया से मुक्त है उसे साक्षात् "हरि का सानिध्य है " मोह पर विजय प्राप्त करने वाला जीव तो विश्व मे बिरला ही होता है ।
यह सुन राजपुत्र बोला मेरा सारा कुटुम्ब और वंश मोहजित ही है । यह बात योगिराज के हृदय मे नहीं बैठी । यह क्षत्रिय कुमार अपना सारा परिवार मोह रहित बताता है । इसके नगर का नाम भी निर्मोही नगरी है इससे जान पड़ता है कि यह सारा नगर ही मोहजीत होगा क्या यह सब सत्य होगा , यह सब प्रत्यक्ष देखकर अपना संशय दूर करूँगा ऐसा सोचकर महायोगी अपनी अदभुद योगशक्ति के द्धारा पलभर मे निर्मोही नगरी के भूभाग मे जा खड़े हुए ।
शरणागत
नीलम सक्सेना
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