Wednesday, 25 January 2017

सुख नहि सोवे आपो आप

सुख नहि सोवे आपो आप 

             
                  एक दिन वह ऐसे विचारो मे चले जा रहा था इतने मे उसे सामने वाले रास्ते से एक गाडी आती दिखाई दी । उसमे एक बहुत मोटा ताजा आदमी बैठा था उसके लक्षणों से लगता था कि वो कोई बड़ा गृहस्थ है रास्ते के लोग सेठ को सिर झुकाकर प्रणाम करते थे । ऐसे धूमधाम से सेठ को आते हुए देखकर विलास ने  विचार किया वास्तव मे यह बहुत सुखी जीव मालूम होता है। इसको कोई रोग दुःख भी नहीं है । विलास ने सेठ के नौकर से पूछा क्यों भाई इस गाड़ी मे बैठकर कौन गया , नौकर ने कहा तुम नहीं जानते हो यह नगर सेठ है "विलास ने पूछा यह बहुत सुखी है यह बात ठीक है न "?  नौकर ने कहा इसमें क्या पूछना है इनके समान आज कौन सुखी है। इनसे पूछ कर राजा भी काम करता है इनका नाम सारे नगर और देश मे किसी से छिपा नहीं है । इनके यहाँ लक्ष्मी का पार नहीं ,इनके घर मे हजारों नौकर -चाकर ,बहुत बड़ा पुत्र परिवार ,इनके यहाँ दान धर्म की थाह नहीं , इनकी कोठियाँ देश देशान्तर और शहर -शहर मे है। जिनमे लाखो रूपए का लेनदेन होता है इनके सुख का क्या कहना है ।

                आजकल राज्य मे बहुत गड़बड़ी मची हुई है उसके लिए भी चिंता हो रही है कि न जाने क्या होगा।
नौकर  बोला जी हाँ ये स्वयं ही सब काम जाँच करते है इससे उनको पूरी नींद लेने का भी अवकाश नहीं मिलता ।विलास बोला तब तो इन्हें भारी दुःखी कहना चाहिए इतनी समृद्धि होते हुए भी सुख से सोने का अवकाश नहीं यह क्या विलास को अब धन और बड़प्पन से घृणा हो गई अब वह साधारण मनुष्यो की और अवलोकन करने लगा।  
                                                                                                       शरणागत 
                                                                                                    नीलम सक्सेना 

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