Tuesday, 31 January 2017

कौन किसका शोक करे

कौन किसका शोक करे 

योगिराज बोले वीर तू इस नगर के मोहजीत राजा का पुत्र है । राजपुत्र प्रणाम करके बोला हाँ महात्मा ! योगी ने कहा तेरे कुटुम्ब मे अभी अभी एक महाशोक जनक घटना घटी है उसे तू नहीं जानता तू बड़े हर्ष के साथ कहाँ जाता है वह बोला मेरा पिता का बनवाया हुआ एक ब्रह्मनिष्ठाश्रम है वहाँ एक महात्मा पधारे है उनके आदरार्थ मैं वही जाता हूँ योगी बोले ,राजपुत्र आज सवेरे तेरा भाई वन मे गया था वहां एक भयंकर सिंह के साथ युद्ध करता हुआ मारा गया मुझे तो बहुत दुःख है और यही समाचार बतलाने के लिए यहाँ आया हूँ यह सुन राजपुत्र बोला योगिराज ,यह शोक समाचार ही है परंतु "कौन किसका शोक करे "इस जगत मे अनेक जन्म लेते है और मरते है यह सब मनुष्य के बंधु ही है तो मुझे किसका शोक और विषाद करना चाहिए योगी ने कहा "अनेक प्रयत्न करने पर भी जो फिर प्राप्त हो तो उसका शोक किस पुरुष को नहीं होता । इससे बढ़कर और शोककारक क्या हो सकता है ?"
यह सुनकर राजपुत्र ने कहा योगिराज आप महात्मा होकर भी मोह के वश होते हो ये हर्ष शोकादि की तरंगे सिर्फ अज्ञान अवस्था के अंग है परन्तु जहाँ " सद्सत के विवेक -सत -चित -आनंद -नित्यानित्य -मोह -ममता -ब्रह्मजीव और माया का विचार है वहाँ उसका वास नहीं होता " जीव का जो देह प्राप्त होता है वह ईश्वरी नियमानुसार प्राप्त होता है जब तक उसकी अवधि निश्चित होती है तब तक वह आत्मा के साथ रहता और आयु पूर्ण होते ही तुरंत पात हो जाता है । महात्मा ,जो जानता है कि "जन्म का पर्यायवाची शब्द मृत्यु है , क्षणभंगुर संसार मे सब पदार्थ नाश होने वाले है , आत्मा ही एक चिरंजीवी -अविनाशी है और जो कभी मृत्यु को प्राप्त नहीं  होती । यह शरीर नाश होने के लिए ही बनी है । विचारशील धीरात्मा न इस तुच्छ देह की ओर नजर करता है और न उसे व्यथा ही होती है वह तो सुख दुःख को समान समझकर ,असार संसार सागर से तर जाता है । ईश्वरी नियम ही ऐसा है तो फिर उसमे क्या शोक " ! 

                                                                                                            शरणागत 
                                                                                                        नीलम सक्सेना  









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