यह दुःखी स्त्रियों का दल
परमेश्वर ने सुख तो स्त्री जाति मे ही लाकर रखा है स्त्रियों की टोली को देखकर सोचने लगा कि इनमे से जरा भी किसी के मुख पर दुःख का बोध नहीं । सब आपस मे मुस्कराती-बतियाती जा रही है। अपने रूप सौन्दर्य के कारण वे दुसरो के मन को अपनी ओर खीचने मे अहोभाग्य मानती है। वाह अब मुझे पता लगा कि स्त्री जाति ही सुखी है ।
इतने मे एक स्त्री से कहते हुए सुना क्यों कृष्णा हमारे साथ क्या अच्छा नहीं लगा यह सुन कृष्णा हँसकर बोली बहन साँझ होने को चली है पुरुषो के घर आने की बेला है स्त्री तो पुरुष की तावेदार हैं पुरुष से ही तो अपना निर्वाह है बिना पुरुष की स्त्री बिना सिर की पगड़ी के समान है । जहाँ हम पति पत्नि मे अच्छा तालमेल नहीं है वहाँ उस घर मे क्लेश है उनमे से एक अधेड़ स्त्री बोली हाँ भई उनसे हम है और हमसे वे है। अधेड़ स्त्री ने अपनी बहू से कहा बेटा धीरे धीरे चलना यह सुन दूसरी स्त्री बोली क्या यह गर्भ से है कितने महीने हुए, अभी से इतनी कमजोर क्यों है वह स्त्री आँखों मे आँसू भरकर बोली क्या करे ईश्वर की मर्जी, एक बार तो गर्भपात हो गया यह दूसरी बारी है। प्रत्येक स्त्री के सिर पर यह गर्भ की अवस्था बड़ी भयंकर और मौत की निशानी है अपना यह स्त्री अवतार बड़ा ही अभागा है । दूसरी स्त्री बोली हाँ बहन हमारे दुःखो का पार नहीं है हमने अभी तक लड़के का मुँह नहीं देखा लड़कियाँ ही पैदा हुई इतना कहते हुए ही उसकी आँखे डबडबा गयी । सब एक दूसरे को समझाने लगी कहने लगी भगवन सब अच्छा ही करते है और करेंगे भी ।निराश न हो देखो संसार मे किसको सुख है ? विस्तार बढ़ने से भी कही सुख होता है कुछ नहीं "जैसा फोड़ा तैसी पीड़ा " यह सुनकर विलास बिलकुल शान्त हो गया और जोर से बोला "हरे -हरे"
यहाँ तो एक नहीं अनेको दुखो की नदियां बहती दिखलाई देती है
शरणागत
नीलम सक्सेना
परमेश्वर ने सुख तो स्त्री जाति मे ही लाकर रखा है स्त्रियों की टोली को देखकर सोचने लगा कि इनमे से जरा भी किसी के मुख पर दुःख का बोध नहीं । सब आपस मे मुस्कराती-बतियाती जा रही है। अपने रूप सौन्दर्य के कारण वे दुसरो के मन को अपनी ओर खीचने मे अहोभाग्य मानती है। वाह अब मुझे पता लगा कि स्त्री जाति ही सुखी है ।
इतने मे एक स्त्री से कहते हुए सुना क्यों कृष्णा हमारे साथ क्या अच्छा नहीं लगा यह सुन कृष्णा हँसकर बोली बहन साँझ होने को चली है पुरुषो के घर आने की बेला है स्त्री तो पुरुष की तावेदार हैं पुरुष से ही तो अपना निर्वाह है बिना पुरुष की स्त्री बिना सिर की पगड़ी के समान है । जहाँ हम पति पत्नि मे अच्छा तालमेल नहीं है वहाँ उस घर मे क्लेश है उनमे से एक अधेड़ स्त्री बोली हाँ भई उनसे हम है और हमसे वे है। अधेड़ स्त्री ने अपनी बहू से कहा बेटा धीरे धीरे चलना यह सुन दूसरी स्त्री बोली क्या यह गर्भ से है कितने महीने हुए, अभी से इतनी कमजोर क्यों है वह स्त्री आँखों मे आँसू भरकर बोली क्या करे ईश्वर की मर्जी, एक बार तो गर्भपात हो गया यह दूसरी बारी है। प्रत्येक स्त्री के सिर पर यह गर्भ की अवस्था बड़ी भयंकर और मौत की निशानी है अपना यह स्त्री अवतार बड़ा ही अभागा है । दूसरी स्त्री बोली हाँ बहन हमारे दुःखो का पार नहीं है हमने अभी तक लड़के का मुँह नहीं देखा लड़कियाँ ही पैदा हुई इतना कहते हुए ही उसकी आँखे डबडबा गयी । सब एक दूसरे को समझाने लगी कहने लगी भगवन सब अच्छा ही करते है और करेंगे भी ।निराश न हो देखो संसार मे किसको सुख है ? विस्तार बढ़ने से भी कही सुख होता है कुछ नहीं "जैसा फोड़ा तैसी पीड़ा " यह सुनकर विलास बिलकुल शान्त हो गया और जोर से बोला "हरे -हरे"
यहाँ तो एक नहीं अनेको दुखो की नदियां बहती दिखलाई देती है
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नीलम सक्सेना
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