Monday, 16 January 2017

वरेप्सु का पूनर्जन्म

वरेप्सु  का पूनर्जन्म 

ऋषियों  ने बटुकजी की  आज्ञा से फिर से यज्ञ आरम्भ किया । शीघ्र पूर्णाहुति हुई अनुष्ठान का श्रेय (फल)संकल्पित कर वह जल राजा के सम्मुख लाया गया और बटुकजी की आज्ञा से राजा के दाहिने हाथ मे डालते ही एकाएक उसके शरीर मे चेतना आई  कुछ ही समय मे राजा जम्हाई लेकर उठ बैठा और मानो कुछ नया ही दृश्य देखकर आया हो ।  अहो गुरूजी ,परम गुरूजी ,हे दीनवत्सल ,हे संसार को पार करने वाले हे दयालु क्षमा करो मैं आपकी शरण मे हूँ इतना कहते हुए उठकर बटुकजी के चरणों मे गिर पड़े चरणों  मे सिर धर कर प्रेम से पकड़ लिए उसके प्रेमाश्रुओं से बटुकजी के दोनों चरण धुल गए। 

सब लोगो को बड़ा आश्चर्य हुआ अभी तो राजा मरणावस्था मे था एकदम उठकर बैठ गया और गुरु गुरु कहकर बटुकजी के चरणों मे जा गिरा यह क्या है ?

ऋषिपुत्र ने जान लिया कि यह रहस्य जानने के लिए  सभी की इच्छा है बटुकजी ने राजा को उठाकर ह्रदय से लगा लिया और आशीर्वाद  देकर कहा  वत्स ,निष्पाप ,धैर्य धर ,घबरा नहीं शांत हो । इतनी देर तक तू कहाँ घूमने गया था तेरी सांस इतनी क्यू चढ़ी हुई है क्या तू किसी भय मे है इस संसार मे तेरे भय पाने योग्य कुछ भी नहीं है तू निर्भय हो गया है ,तेरी सारी वासना दूर हुई है ,तृष्णा दूर हुई है ,सुख समीप आया है और संसार का भेद जाता रहा है फिर भी तू घबराया सा है। 

यह सुनकर राजा बोला "प्रभु गुरुदेव" यह सब आपकी ही कृपा का प्रताप है आपके दयालु चरणों के दर्शन होने से मैंने अलभ्य लाभ पाया है गुरुदेव आप तो सर्वज्ञ हो परंतु मेरे हृद्य मे आश्चर्य भरा हुआ है वह नहीं समाता आप मुझसे पूछते है तो मैं जहाँ -२ घूमकर आया हु वहाँ का सारा वृतान्त सुनाता हूँ ऐसा कहकर वरेप्सु सब लोगो के सामने अपने मरणकाल का अदभुद और आश्चर्य पूर्ण वृतान्त सुनाने लगा । 


                                                                                                                        शरणागत 
                                                                                                                     नीलम सक्सेना  






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