Friday, 20 January 2017

संसार सुख बंध्य पुत्र के समान है

संसार सुख बंध्य पुत्र के समान है 

"यह संसार आदि में भी नहीं और वर्तमान में भी नहीं है परंतु मिथ्या होने पर भी सत्य के समान जान पड़ता है। "बटुक तेज रूप और विचित्र ज्ञान शक्ति से लोगों को अपार मोह हो जाने से उसकी ही मूर्ती सबके मनन में बस गयी ।  वाह इस बालक की कैसी बुद्धि है इसका कैसा ज्ञान है लौकिक और पारलौकिक दोनों बातों का पूरा अनुभव प्राप्त किया हुआ मानो यह साक्षात् शुकदेव मुनि हैं एक जिज्ञासु  पूछा "ब्रह्मपुत्र इस संसार में अनेक प्रकार के सुख हैं मनुष्य पुरुषार्थ द्धारा  उनको प्राप्त भी कर सकता है परंतु संसार में सबसे बढ़कर कौन सा  सुख है कि जिसको करने से मनुष्य धन्य और कृतकृत्य कहलाता है। "
यह सुन बटुक जी मुस्कुराकर बोले ,एक बात कहता हूँ सुनो एक छली अपने साथ अपने ही जैसे कई  बनाकर स्वयं बड़ा सिद्ध बन गांव-गांव और स्थान-स्थान घूमा  करता था और भोले भाले लोगों को धोका देने के लिए जन्त्र-मन्त्र करके सिद्धाई दिखलाता था और  लोगों से पैसे ऐठता था। भोले-भाले स्त्री पुरुष जिनके बच्चे नहीं थे बह छली की बातों आकर यात्रा के बहाने बंध्या के सत्पुत्र की खोज करने निकले भोले और पापहीन  होने से ईश्वर  उन्हें ऐसी सुमति दी कि वे उसकी खोज करने के उद्देश्य से प्रत्येक तीर्थ स्थान में फिरने लगे और इस बहाने से उनसे अनायास अच्छे कर्म होते गए। उनके पुण्य से उन्हें  तीर्थ में एक सज्जन महात्मा के दर्शन हुए उसने सहज ही पूछा भाई तुम इतने उदास क्यों दिखते  हो उन बृद्ध दंपति ने कहा महाराज हम बृद्धाबस्था को पहुच गए किन्तु हम निःसंतान हैं एक सिद्ध ने हमें पुत्र प्राप्ति का उपाय बतलाया है उसी की खोज करते है परंतु आज वर्षो बीते और बहुत परिश्रम भी किया परंतु अभी तक सफलता नहीं मिली उन लोगो की बाते सुनकर महात्मा बोले क्या मुझसे कहोगे कि वह कौन सा उपाय है उन स्त्री पुरुष ने कहा हमें "वन्ध्या के सत्पुत्र " के बाल चाहिए इतना सुनते ही महात्मा विस्मित होकर बोले "क्या " ? वन्ध्या और उसका सत्पुत्र और उसके बाल यह कैसी विचित्रता है यह सब कैसे हो सकता है ऐसे भवर मे तुमको किसने गोता खिलाया है हरे हरे संसार मे कैसे कैसे दुष्ट लोग बसते है इन भोले पापरहित मनुष्यो को उसने कितना भटकाया और कितना दुःखी किया है महात्मा वाले जिसकी कोख से किसी भी तरह की सन्तति नहीं हुई हो उस स्त्री को बन्ध्या " बाँझ" कहते है यदि तुम उस धूर्त छली का कथन सत्य मानते हो तो अपनी बंध्या स्त्री के सत्पुत्र के केश काटकर उसके क्यों नहीं ले जाते इतना कहकर वह महात्मा फिर से उस दम्पत्ति से बोले , मनुष्य को अपने पूर्व जन्म के किये हुए कर्मो का फलरूप प्रारब्ध भोगे बिना छुटकारा नहीं मिलता इसलिए संतति होने के लिए ऐसे व्यर्थ यत्न कर दुखी होना अज्ञान है महात्मा बोले ।  पुत्र से क्या होता है पुत्र सुपूत निकला तो ठीक यदि कुपुत्र निकला तो ठीक यदि कुपुत्र निकला तो सारे कुल को वोर देता है ऐसे पुत्र से क्या कल्याण होता है परन्तु परमार्थ को न जानने वाले अज्ञानी लोग पुत्र इसलिए चाहते है कि वह वृद्धावस्था मे हमारा पालन पोषण करेगा और मरने के पीछे पिण्ड प्रदानादि क्रिया करके पुत्र मोक्ष दिलाये परंतु यह सत्य नहीं है । इस संसार से उद्धार पाने कठिनाई से पार किये जाने वाले संसार के बन्धन से छूटने के लिए दूसरा कोई भी काम नहीं आता जीव स्वयं अपना तारने वाला और स्वयं ही अपना डुबाने वाला है अर्थात संसार से अपना  मोक्ष होने के लिए अपना ही पुरुषार्थ काम आता है । 
      श्री कृष्ण जी ने भी अर्जुन को उपदेश देते हुए बतलाया है कि पुत्र क्या मोक्ष दे सकता है ? पुत्र यदि सुपुत्र हो तो उससे यह अवश्य हो सकता है कि पिता के मरने के पीछे शास्त्र मे कही हुई उत्तम क्रिया करके "पुम नाम " के नरक से तार सकता है परंतु वार-वार होने वाले जन्म -मरण रूप बन्धन से पुत्र मुक्त नहीं करा सकता इस बंधन को छुड़ाने वाला तो अविघा का नाश और विघा की प्राप्ति है ,परमात्मा मे एकता ,जगतपिता ,संसार को चलाने वाले " माह -मंगल नाम का स्मरण " और उनके चरण कमलो का ध्यान ही मुक्ति का स्थान है इसलिए है भाविक मनुष्यो  तुम यह सब झूठा परिश्रम छोड़कर अपने घर जाओ चित्त को द्रढ़ता से स्थिर कर संसार के बंधन से छूटने के लिए , सारे दुःखो को काटने वाले और अविनाशी सुख के देने वाले "श्री हरि की शरण " मे  जाकर निरंतर सेवा करो । 
इस उपदेश को सुनकर  दंपत्ति अपनी भूल के अँधेरे से जाग्रत होकर बहुत संतुष्ट हुए ।  वे उस महात्मा के पैरो पर गिरकर अपने उद्धार का रास्ता जानने के लिए विनय करने लगे महात्मा ने उनको भगवान के नाम का उपदेश दिया " तुम्हारा कल्याण"हो ऐसा आशीर्वाद देकर विदा किया  गांव में आकर उन्होंने उस धूर्त के कपटकार्य सब लोगो को बताये और माया मे फंसे हुए अनेक जीवो को अंधे कुँए मे पड़ने से रोका और स्वयं एक चित्त से उन महात्मा के उपदेश के अनुसार ईश्वर की भक्ति कर अच्छी गति को प्राप्त किया । 

यह कथा समाप्त कर बटुकजी ने पूछने वाले जीव को संबोधन करके कहा इस लोक मे सुख नाम की कोई वस्तु नहीं है ईश्वर के प्रकाश द्धारा जो पदार्थ प्रकाशित होता है जो नित्य ,सत्य और प्रकाशस्वरूप है वही सुख है और तो सब भृम ही समझो । 

शरणागत 
 नीलम सक्सेना 
    

















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