सत्ता वैभव मे भय
एक दिन विलास नगर के राजपथ पर घूम रहा था इतने मे उसे बड़े धूमधाम से आती हुई एक सेना दिखाई दी। सेना मे विचित्र कपड़ो और जेवरो से सजे हुए असंख्य वीर सैनिक अमूल्य घोड़ो पर खुले हथियारों सहित बैठे हुए थे । वहाँ नाना प्रकार के बाजे बज रहे थे सेना के बीच मे एक सुन्दर और ऊँचा पुरुष था। वह कीमती हीरे मोती पहना था और सोने से सजे हुए हाथी पर रत्न जड़ित अम्बारी मे बैठा हुआ था उसके दोनों ओर चंवर डुल रही थी।
उसके रूप सौंदर्य वस्त्रालंकार और समृद्धि की शोभा का पार नहीं था। रास्ते के दोनों ओर बने हुए महलो और अटारियों से नगर की सुन्दर स्त्रियां उस पर अनेक तरह के फूलो की वर्षा कर रही थी नगर निवासी बार-बार उसके दीर्घायु होने की कामना कर रहे थे और जयजयकार की ध्वनि करते थे यह पुरुष उस नगर का राजा था विलास ने उसकी ऐसी समृद्धि और शोभा देखकर निश्चय किया कि बस इसके सुख के आगे सब धूल है इसके समान सुखी कोई भी नहीं । विलास आगे न बढ़कर उसी के समान सुख की अभिलाषा करने लगा।
दो दिन बाद इतने मे उसे कुछ जुदा ही देखने को मिला उसने उसी राजा को महाभयंकर कवच ,टॉप आदि लड़ाई के समान से सजे और वैसे ही सैनिको और घोर गर्जना वाले युद्ध बाजो के शब्दो सहित शीघ्रता से जाते हुए देखा सारे नगर मे इस समय आनन्द के बजाय भय छा रहा था । सब प्रजा इसी चिंता मे निमग्न थी कि न जाने अब क्या हो ? पूछने से मालूम हुआ कि यह राजा किसी चढाई कराने वाले बड़े शत्रु को हटाने के लिए जा रहा था और उसको वहाँ जय मिलेगी या नहीं इसलिए भारी चिंता थी। विलास ने सोचा अरे -अरे यहाँ तो मेरे भाँति दुःख - द्वंदो से घिरा हुआ है । राजा को किस बात का सुख है सोच मे पड़ गया ।
शरणागत
नीलम सक्सेना
एक दिन विलास नगर के राजपथ पर घूम रहा था इतने मे उसे बड़े धूमधाम से आती हुई एक सेना दिखाई दी। सेना मे विचित्र कपड़ो और जेवरो से सजे हुए असंख्य वीर सैनिक अमूल्य घोड़ो पर खुले हथियारों सहित बैठे हुए थे । वहाँ नाना प्रकार के बाजे बज रहे थे सेना के बीच मे एक सुन्दर और ऊँचा पुरुष था। वह कीमती हीरे मोती पहना था और सोने से सजे हुए हाथी पर रत्न जड़ित अम्बारी मे बैठा हुआ था उसके दोनों ओर चंवर डुल रही थी।
उसके रूप सौंदर्य वस्त्रालंकार और समृद्धि की शोभा का पार नहीं था। रास्ते के दोनों ओर बने हुए महलो और अटारियों से नगर की सुन्दर स्त्रियां उस पर अनेक तरह के फूलो की वर्षा कर रही थी नगर निवासी बार-बार उसके दीर्घायु होने की कामना कर रहे थे और जयजयकार की ध्वनि करते थे यह पुरुष उस नगर का राजा था विलास ने उसकी ऐसी समृद्धि और शोभा देखकर निश्चय किया कि बस इसके सुख के आगे सब धूल है इसके समान सुखी कोई भी नहीं । विलास आगे न बढ़कर उसी के समान सुख की अभिलाषा करने लगा।
दो दिन बाद इतने मे उसे कुछ जुदा ही देखने को मिला उसने उसी राजा को महाभयंकर कवच ,टॉप आदि लड़ाई के समान से सजे और वैसे ही सैनिको और घोर गर्जना वाले युद्ध बाजो के शब्दो सहित शीघ्रता से जाते हुए देखा सारे नगर मे इस समय आनन्द के बजाय भय छा रहा था । सब प्रजा इसी चिंता मे निमग्न थी कि न जाने अब क्या हो ? पूछने से मालूम हुआ कि यह राजा किसी चढाई कराने वाले बड़े शत्रु को हटाने के लिए जा रहा था और उसको वहाँ जय मिलेगी या नहीं इसलिए भारी चिंता थी। विलास ने सोचा अरे -अरे यहाँ तो मेरे भाँति दुःख - द्वंदो से घिरा हुआ है । राजा को किस बात का सुख है सोच मे पड़ गया ।
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नीलम सक्सेना
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