कारीगर के पुत्र का पात्र
बटुकजी बोले - पिताजी ! अपने जो कहा वह सत्य है , परन्तु अविघा से हुए मनुष्य की तरह क्या मुझको भी बारम्बार नाटक दिखलाना चाहिए , पिताजी मेरी एक बात सुनो और उसका उत्तर दो , एक श्रेष्ठ कारीगर के लड़के ने खदान से धातु निकालकर गलाया ,तपाया ,ठोका -पीटा और एक बर्तन बनाया और उसमे इच्छानुसार द्रव्य भरकर काम मे लाया और बड़ा आनंद पाया । दिन बीता रात आई सब सो गए । दूसरे दिन बर्तन को आग मे डालकर तोड़ -फोड़कर फिर से दूसरा नया पात्र बनाने लगा तब उसके पिता ने कहा मुर्ख लड़के तू यह क्या करता है तब लड़के ने उत्तर दिया पिताजी पात्र बनाता हूँ । पिता ने कहा यह पात्र ही तो है परन्तु पिताजी यह तो कल का बनाया हुआ है इसलिए इसी को फिर से उत्तम और नया पात्र बनाता हूँ ।
इतना कहकर बटुकजी बोले ऋषिदेव इस कारीगर के पुत्र का उत्तर कैसा है ऋषिराज तुम्हारा भी विचार इस कारीगर के लड़के से मिलता जुलता है ऋषिदेव यह सुनकर अवाक् रह गए ।
और बोले पुत्र बालक बुद्धि छोड़कर घर चल ।
शरणागत
नीलम सक्सेना
बटुकजी बोले - पिताजी ! अपने जो कहा वह सत्य है , परन्तु अविघा से हुए मनुष्य की तरह क्या मुझको भी बारम्बार नाटक दिखलाना चाहिए , पिताजी मेरी एक बात सुनो और उसका उत्तर दो , एक श्रेष्ठ कारीगर के लड़के ने खदान से धातु निकालकर गलाया ,तपाया ,ठोका -पीटा और एक बर्तन बनाया और उसमे इच्छानुसार द्रव्य भरकर काम मे लाया और बड़ा आनंद पाया । दिन बीता रात आई सब सो गए । दूसरे दिन बर्तन को आग मे डालकर तोड़ -फोड़कर फिर से दूसरा नया पात्र बनाने लगा तब उसके पिता ने कहा मुर्ख लड़के तू यह क्या करता है तब लड़के ने उत्तर दिया पिताजी पात्र बनाता हूँ । पिता ने कहा यह पात्र ही तो है परन्तु पिताजी यह तो कल का बनाया हुआ है इसलिए इसी को फिर से उत्तम और नया पात्र बनाता हूँ ।
इतना कहकर बटुकजी बोले ऋषिदेव इस कारीगर के पुत्र का उत्तर कैसा है ऋषिराज तुम्हारा भी विचार इस कारीगर के लड़के से मिलता जुलता है ऋषिदेव यह सुनकर अवाक् रह गए ।
और बोले पुत्र बालक बुद्धि छोड़कर घर चल ।
शरणागत
नीलम सक्सेना
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